‘गैस सलेण्डर’ पाने के लिए
अग्निपथ पर लगी है लम्बी लाइन
कब से…….दूर तलक….!
तपस्यारत दीखता एक छोटा सा बालक
पसीने से लथपथ !
एक हाथ में मूल्य जमा रसीद लिए
दूसरे हाथ से खिसका रहा वह खाली सलेण्डर
बेहद खुश है वह बालक
कि आनेवाला है उसका नंबर …..!!
लेकिन तत्क्षण कोई ‘रंगदार’ बीच में घुस जाता है
पीछे के कुछ लोग…….तो
महीने स्वर में करते हैं प्रतिरोध….!
परन्तु, आगे का आदमी…कुछ नहीं बोल पाता है
धीरे से बुदबुदाता है, हल्के से कुछ इस तरह फुसफुसाता है-
“दादातंत्र में ऐसा ही होता है….!
यदि कुछ बोले तो पिट जाओगे….!!
चुपचाप देखते चलो-आगे क्या होता है ?”
कि अचानक आवाज आती है…
‘सलेण्डर समाप्त हो गया’
शेष लोग कल आइयेगा……ट्रक पहुँचा या नहीं
पता भी लगाइयेगा……!
केवल दस सलेण्डर बचा है
जो रिज़र्व कोटे का है !
यह सुनकर बालक सिहर उठता है, और…
उसके अन्तर्मन में अनेक प्रश्न उठने लगते हैं –
क्या रिज़र्व रह सकती है भूख भी ?
या रिज़र्व रह सकता है आत्मसम्मान ?
या रख लें रिज़र्व हम अपना पसीना ?
इसी अग्निपथ पर बहाने के लिए ……फिर कल !!
कौन देगा उत्तर…..???
रह गये सारे प्रश्न अनुत्तरित…….अग्निपथ पर |
*** डॉ.मधेपुरी की कविता ***