Poem-Aadmi

दिन में सूरज की रोशनी

रात में बिजली की चकाचौंध

आखिर अंधेरा

जाए तो जाए किधर –

सिमटकर दुबक गया अंधेरा

आदमी के अन्दर

और

आहिस्ता आहिस्ता

दीमक की तरह

शख्सियत व इंसानियत को

निग़लता जा रहा है

आदमी !

आदमी नहीं

बस ! अब लाश बनता जा रहा है |

*** डॉ.मधेपुरी की कविता ***