
कहाँ जन्मे सुनो हम नहीं जानते
कब मरेंगे कहाँ हम नहीं जानते
दिन बचपन के बीते जवानी ढली
कब झुकेगी कमाँ हम नहीं जानते
काम करना है रुकना नहीं है यहाँ
कब छुटेगा जहाँ हम नहीं जानते
रे क्षणिक जिन्दगी साथ देंगे कभी
ये जमीं जड़ मकाँ हम नहीं जानते
नेक कर्मों से जीवन जुड़े तो सही
फल मिले ना मिले हम नहीं जानते
सिर झुका के ना जीना मधेपुरी तूँ
फिर उठे ना उठे हम नहीं जानते
*** डॉ.मधेपुरी की ग़ज़ल ***