सर्वप्रथम दृढ़ प्रतिज्ञ बनें और अपने अन्दर के ईश्वरीय शक्तियों के माध्यम से दस आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त कर विजयादशमी मनाएं। सदैव सत्य और धर्म के रास्ते पर चलते हुए- काम, क्रोध, लोभ, मोह….. ईर्ष्या, द्वेष….. आलस्य, अहंकार… छल और कपट – इन दसो को परास्त कर अन्दर के रावण पर विजय प्राप्त करें और मनाएं विजयादशमी !
दृढ़ प्रतिज्ञ व्यक्ति संसार से अपेक्षा रखने के बजाय खुद से लड़ने का प्रयास करता है। आत्मनिर्भर होने के लिए हमें खुद से अपेक्षा रखनी होती है। विज्ञान तो लोगों के जीवन में फिलहाल बहुत सा बदलाव ला दिया है-
कुएं में झाँककर देखिए तो जरा- जो घड़ा झुकता है वही पानी भरकर लाता है….. नहीं झुकने वाला घड़ा खाली ही लौट कर आता है।
जीवन का भी यही गणित है, जो झुकता है वह पाता है। आपको भी पाना है तो झुकना सीखिए। रावण को जलाने के बजाय अपने अन्दर के दशानन को जलाना होगा। मैदान में प्रतिवर्ष रावण को वही लोग जलाते हैं जो उनके अपने लोग होते हैं। परन्तु, दोनों में एक फर्क होता है- बाहर जलने वाला रावण (यानि दशानन) अपने दसो चेहरे बाहर रखता है तथा उसी दशानन को जलाने वाले तथाकथित उनके अपने लोग (यानि हम सब) अपने समस्त चेहरों को भीतर छुपा कर रखते हैं।
सोचिए तो सही….. कड़ी धूप में जिन पत्तों से हम पनाह माँगते हैं उन्हीं पत्तों के सुख-सुखकर जमीन पर गिर जाने के बाद हम जूतों से उन्हें रौंदते हुए बेअदब होकर चलते हैं….. यह अकड़ दिखाना क्या लाजमी है ? अकड़ दिखाने का वक्त तो मरने के बाद भी मिलेगा जब आप अकेले चार-चार लोगों के कंधों पर सवार होकर शमशान की ओर जाएंगे और ढेर सारे लोग सिर झुकाकर आपके पीछे-पीछे चलेंगे।
*** डॉ.मधेपुरी की बातें ***