Gadhe Ki Baat Poem

आदमी ने गदहे से पूछा
तुम भी बनोगे आदमी !
गुस्से में गदहे ने कहा
तुम ! कब बनोगे आदमी ?

कहा गुस्से में आदमी ने
क्या बकते कुछ शर्म करो
चुप रहो मुंह खोलो न कभी
तुम केवल अपना कर्म करो

सुनते ही गदहा हुआ गर्म
छोड़ दी उसने लाज-शर्म
रखे बिना किसी का ध्यान
गदहे ने तब दिया बयान-

“सदा से तो यूँ चुप ही रहा हूँ
किया हूँ श्रम और जीवन जिया हूँ
तुम्हीं से हुई धरती बेहाल देखो !
अपनी गिरावट का ये हाल देखो !!”

*** डॉ.मधेपुरी की कविता ***