गिद्ध !
पर्यावरण का रक्षक
स्वच्छ भारत अभियान का स्वयंसेवक
किन्तु,
खेतों में डाले गये फर्टिलाइजरों, कीटनाशकों
व पालतू जानवरों को खिलाई गई दवाओं ने
गिद्धों को विलुप्ति के कगार पर पहुंचा दिया
तभी तो मानव दखल अंदाजी से दूर
ऊंचे पर्वतीय दरख़्तों पर
भद्दा सा घोंसला बनाकर
रहवास करने लगे हैं- कुछ बचे-खुचे गिद्ध !
जब कभी सताती है- उनके बच्चों को भूख !
तो एक बच्चा बोलता है-
‘आज इंसानों का गोश्त खाने को जी चाहता है |’
बच्चे का दिल दुखी ना हो…… इसके लिए
गिद्ध घंटों आकाश में मंडराता है
और दिन ढलने से पहले ही
जंगली गाय की टांग लेकर लौट आता है……..
परन्तु, बच्चों की करूण आवाज…… ‘यह तो गौमांस है !’
सुनकर गिद्ध दुखी हो जाता है
फिर वह पंख फैलाकर………
दो-चार मिनट खुद को गरमाता है
और विपरीत दिशा में उड़ जाता है……..!
इस बार भी निराश होकर वह
जंगली सूअर की टांग ही ले आता है
जिसे देखकर गिद्ध का बच्चा उदास हो जाता है
और अवरुद्ध कंठ से बस इतना ही कह पाता है-
“पापा ! मेरी मामूली सी इच्छा की पूर्ति आपसे नहीं हो पाता है|”
यह सुनते ही गिद्ध भी आदमी की तरह…….
अपनी औलाद के चेहरे पर मुस्कान देखने के लिए
तुरंत एक घिनौनी योजना बना लेता है………!
वह पहले जंगली गाय की टांग को होशियारी से
मंदिर में गिरा आता है
और चतुराई से सूअर की टांग भी
मस्जिद में रख आता है
सुबह होते-होते चारों ओर बिछ जाती हैं इंसानी लाशें…..
नजारा देख बाल गिद्ध प्रसन्न हो नाचता-गाता है
और इतना ही पूछ पाता है-
पापा ! इंसानी लाशों का यह ढेर…….
इतनी जल्दी कैसे हो गया ?
जवाब में गिद्ध ने अपने बच्चों से यूँ कहा-
“ये लोग केवल कहने को हैं इंसान
पर हैं जानवर से भी बदतर और हैवान
इंसानी शक्ल-सूरत में धरती पर
ना जाने कब से ये रहते हैं
एक से बढ़कर एक घिनौना काम करते हैं
खुद को ईश्वर-अल्लाह के बंदे कहते हैं !
मैंने तो पहली बार तुम्हारी खुशी की खातिर
दिया है ऐसे घिनौना काम को अंजाम
लेकिन, आज ही मैं खुद की शपथ लेता हूँ
कि भविष्य में फिर कभी नहीं करूंगा
इस तरह का घिनौना काम………!!”
और यह संकल्प गुनगुनाते हुए गिद्ध अपने बच्चों के साथ अज्ञात स्थान की ओर आकाश मार्ग से उड़ता हुआ चला जाता है…….!
*** डॉ.मधेपुरी की कविता ***