Cultural hijack in hi-tech age

 

वर्तमान ‘हाई-टेक’ जमाने में भले ही आदमी का हाथ-पैर रोबोट बन गया हो और गंदे नाले के भीतर जा-जाकर वह भरपूर सफाई भी कर देता हो, परन्तु आदमी के अन्दर की सफाई करने के बजाय उसकी उदारता, विनम्रता, सभ्यता एवं संस्कृति आदि का जिस कदर इस हाई-टेक जमाने में हाई-जैक हो रहा है कि आदमी अब आदमी नहीं रह गया बल्कि दिन-प्रतिदिन सभी लाश बनता जा रहा है ।
मैं आपको एक वाकया सुनाता हूँ- कभी राजधानी पटना के एक डॉक्टर से अपने हेल्थ का ‘रूटीन चेकअप’ कराने गया तो रिपोर्ट लेने हेतु लगभग 1 घंटे बाद आने को कहा गया । सोचा बगल में ही एक रिश्तेदार हैं, क्यों न मिल लूँ । ड्राइवर को घर देखा हुआ था । जाम से निबटते हुए थोड़ी ही देर में जगह पर पहुंचा दिया ।
बता दूँ ! दिन था रविवार का । सभी लोग घर में ही थे । फिर भी सात-आठ लड़के-लड़कियों से भरे-पूरे घर में बिल्कुल सन्नाटा पसरा था । ज्योंही कमरे के अंदर मैं प्रवेश करता हूँ- देखता हूँ कि सबों के हाथ में स्मार्टफोन है। सभी फोन के टच में हैं, परंतु कोई किसी के टच में नहीं । सभी एक-दूसरे से दूरी बनाये हुए भिन्न-भिन्न कोने में अलग-अलग सिमटे हुए……..। फिर भी सभी मुझे बारी-बारी से सम्मान भरी नजरों से देखा और प्रणाम भी किया, परंतु मुझे ऐसा लगा जैसे उदारता, विनम्रता, संस्कार, सभ्यता एवं संस्कृति को इस हाई-टेक जमाने का स्मार्टफोन धूल-धूसरित कर दिया है ।
………कि लगे हाथ मैं सड़क की ओर खुली खिड़की से देखता हूँ – मुहल्ले के किसी मृत व्यक्ति को श्मशान की ओर ले जाते हुए तथा मात्र एक बूढ़े आदमी को “राम नाम सत्य है” की आवाज़ लगाते हुए । सोचने लगा कि मुर्दा तो कुछ सुनता नहीं, फिर भी इस हाई-टेक जमाने में सभी लोग जनाजे के पीछे अपना-अपना स्मार्टफोन हाथ में लिए चल रहे हैं……। ऐसे लोगों को ये सब सुनाने से क्या फायदा……. वे तो जिन्दा लाश जैसे हैं- जिन्हें ना तो हम दफना ही सकते हैं और ना उनसे कोई अच्छा-भला काम ही ले सकते हैं……….।