कोरोना हमारे दुष्कर्म हैं

कोरोना के कहर के सामने बड़े-बड़े राष्ट्राध्यक्षों के हाथ-पाँव फूलने लगे हैं। कुछ तो अपने पद से इस्तीफा तक देने की भी सोचने लगे हैं।

क्या है ये कोरोना जिसने सारे संसार को घर-दरवाजे के अन्दर बंद कर डाला है। प्रकृति हमें क्या बताना चाहती है….? बस यही कि हम प्रकृति की मर्यादा में रहना सीखें और सतत ध्यान यही रखें कि हमें कोरोना के साथ जीना कैसे है ?

यूँ अच्छी आदतों को जीवन में लाना कठिन है, परन्तु उसके साथ जीवन जीना बहुत आसान हो जाता है। समस्त शास्त्रों एवं विचारकों के अनुसार कोरोना को पराजित करने के लिए अनुशासित जीवन की जरूरत है:-

इसलिए कि कोरोना ना तो प्राकृतिक है और न प्रारब्ध ही, बल्कि कोरोना हमारे दुष्कर्म हैं जिसके साथ अब हमें हमेशा अनुशासित होकर जीना होगा।

*** डॉ.मधेपुरी की बातें ***