प्रत्येक आदमी साँस ग्रहण करते समय जो होता है, साँस छोड़ते समय वो नहीं रहता | परिवर्तन की क्रिया निरंतर चलती रहती है | साँस लेते वक्त यदि कोई व्यक्ति ईमानदार है तो कोई जरूरी नहीं कि साँस छोड़ते वक्त वही व्यक्ति भ्रष्टाचार से दोस्ती न करे |
फिलहाल तिजारत से लेकर सियासत तक भ्रष्टाचार में डूबी है | सियासी घोटालों एवं तिजारती भ्रष्टाचारों पर नज़र पड़ते ही हर संवेदनशील बुद्धिजीवी यह महसूसने लगता है कि संपूर्ण संसार ही एक तरह के अंदरूनी आतंकवाद की चपेट में आ गया है |
प्राथमिक स्कूल का एक सन्मार्गी बच्चा भारतरत्न डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम से यही प्रश्न पूछता है- अंकल ! क्या पीएम, सीएम और डीएम के चाहने पर भारत से भ्रष्टाचार मिट जाएगा ?
प्रश्न सुनते ही बच्चों के चाचा डॉ.कलाम कुछ देर के लिए निरुत्तर हो जाते हैं…..|
फिर जवाब में डॉ.कलाम यही कहते हैं-
इन तीनों के चाहने पर नहीं, परंतु दूसरे तीन यदि हृदय से चाह लें तो भ्रष्टाचार की जड़ हिल सकती है……. और वे तीनों हैं- माता, पिता और एलीमेंट्री स्कूल के शिक्षक !
हम सभी अपने अंदर में बैठे भ्रष्टाचार रूपी आतंकवाद के खिलाफ जंग की शुरूआत खुद से करें…..!!